देश के आर्थिक विकास में एमएसएमई का योगदान


परिचय

एमएसएमई यानि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम पूरी दुनिया में आर्थिक वृद्धि का द्योतक है| लगभग दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं में उद्यम सृजित करने में 90% हिस्सेदारी एमएसएमई की है | भारत में भी यह कृषि के बाद रोजगार उत्पन्न करने का दूसरा सबसे बड़ा जरिया है| राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण(2015-16) के अनुसार एमएसएमई क्षेत्र ने देश में 11.10 करोड़ नौकरियां सृजित की हैं| बड़े उद्योगों की तुलना में एमएसएमई न केवल कम पूँजी लागत पर बड़े पैमाने में रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, बल्कि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगिकीकरण में भी मदद करती है| यह न केवल उच्च आर्थिक विकास दर में बल्कि एक समावेशी एवं सतत समाज के निर्माण में भी असंख्य तरीकों (जैसे-संतुलित क्षेत्रीय विकास, काम लागत पर गैर-कृषि आजीविका, आर्थिक मंदी से बचाव आदि) से योगदान देता है| कम निवेश, सुगम परिचालन और उचित स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करने की क्षमता के कारण एमएसएमई भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का माद्दा रखता है|

 

भारत में एमएसएमई की परिभाषा

भारत सरकार ने एमएसएमई के वर्गीकरण लिए नए मानदंडों को अधिसूचित किया है जो कि 01 जुलाई 2020 से लागू हो गए हैं -

तालिका - सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का वर्गीकरण (करोड़ में )

उद्यम के प्रकार

संयंत्र और मशीनरी अथवा उपस्कर में निवेश

सालाना कारोबार (टर्नओवर)

सूक्ष्म

1

5

लघु

10

50

मध्यम

50

250

उपरोक्त परिभाषा में, निर्यात को टर्नओवर की गिनती से बाहर रखा गया है ताकि उद्यम एमएसएमई इकाई के लाभों को गवायें बिना अधिक से अधिक निर्यात कर सकें |

 

भारतीय अर्थव्ययस्था में एमएसएमई की भूमिका

एमएसएमई भारतीय आर्थिक संरचना की रीढ़ है | यह वैश्विक आर्थिक प्रतिकूलताओं को दूर करने के साथ साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की रूपरेखा को मजबूत बनाने के लिए काम करता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी भागीदारी निम्नांकित बिंदुओं से स्पष्ट होगी-

रोजगार: एमएसएमई स्वरोजगार और मजदूरी दोनों के लिए अधिकतम अवसर प्रदान करती है | एमएसएमई वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 के अनुसार विनिर्माण के क्षेत्र में 360.41 लाख, व्यापार में 387.18 लाख तथा अन्य सेवायों में 362.29 लाख रोजगार सृजित किये गए हैं |

 

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 73वाँ दौर(2015-16) के अनुसार भारत के एमएसएमई क्षेत्र में 633.88 लाख इकाइयाँ शामिल हैं जिसकी वजह से विनिर्माण क्षेत्र के जीडीपी में एमएसएमई का लगभग 6.1% योगदान है और सेवा क्षेत्र में जीडीपी का 24.63% है| एमएसएमई मंत्रालय ने 2024 तक सकल घरेलू उत्पाद में अपना योगदान 30% से 50% करने का लक्ष्य रखा है तथा भारत को $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनाने में एमएसएमई के योगदान का लक्ष्य $2 ट्रिलियन रखा गया है |

 

निर्यात: निर्यात अर्थव्यवस्था की वृद्धि के लिए अपरिहार्य है क्यूँकि इसकी वजह से विदेशी राजस्व आता है, जो देश की आर्थिक वृद्धि में मदद करता है | देश में एमएसएमई के द्वारा 21 सेक्टरों में लगभग 7500 उत्पाद बनायें जाते है जो 192 देशों में निर्यात किये जाते हैं | भारत के निर्यात में इसकी 45 फीसदी की हिस्सेदारी है | वर्ष 2018-19 में कयर निर्यात का मूल्य 2100 करोड़ रुपये था |

 

समावेशी विकास: एमएसएमई ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्ग के लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करके समावेशी विकास को बढ़ावा देता है | खादी और ग्रामोद्योग कम लागत में चालू हो जाते हैं और काफी संख्या में ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिलता है | वर्ष 2018-19 में खादी उत्पादों की बिक्री 2833.71 करोड़ रुपए की थी |

 

डिजिटल भुगतान: गाँव एवं छोटे शहरों में लघु एवं खुदरा व्यापारियों की वजह से लोगों को बैंकिंग सेवाओं से जुडने का अवसर मिल रहा है| लोगों को भीम, यूपीआई, क्यूआर कोड, एटीएम कार्ड, पीओएस से पेमेंट करने में अब आसानी एवं सहजता हो रही है जिस से कैशलेस अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिल रहा है |

 

नवोन्मेष को बढ़ावा: यह नवोदित उद्यमियों को नए उत्पादों की रचना, व्यवसायिक विकास एवं कौशल प्रशिक्षण के लिए अवसर प्रदान करता है| एमएसएमई मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018-19 में आयोजित विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रमों में 2.69 लाख व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया है |

 

महिला उद्यमिता: महिल उद्यमिता ने भारत की सामाजिक-आर्थिक उद्देश्य को पूरा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है | एमएसएमई के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में महिला उद्यमियों का योगदान बढ़ रहा है | औद्योगिक उत्पादन में महिला उद्यमिता का योगदान 3.08% है तथा ये 80 लाख लोगों को रोजगार प्रदान कर रही हैं | महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने स्त्री शक्ति, महिला उद्यम निधि, देना शक्ति जैसी योजनाएँ शुरू की हैं |

चुनौतियाँ एवं सरकार द्वारा उठाए गए कदम  

·         ऋण की अभिगम्यता: भारत में अभी भी सिर्फ 10% एमएसएमई ही औपचारिक ऋण के स्रोत( बैंक और एनबीएफसी) का उपयोग करते हैं, बाकी 90% अनौपचारिक स्रोत (साहूकार, चिट फंड, स्वयंसहायता समूह) से ऋण लेते है जिसकी ब्याज दर बहुत ज्यादा होती है | कई जरूरतमंदों को जमीन या गहने गिरवी रखने पड़ते हैं| असंगठित क्षेत्र(फेरीवाला, ठेलेवाला, वेंडर आदि) को जिनके पास कोई पंजीकरण नहीं होता है, उन्हे तो ऋण मिलना नगण्य ही होता है|

पहल - लोन इन 59 मिनट्स पोर्टल की शुरुआत की गई है, जिस से व्यापारी आसानी से ऋण के लिये आवेदन कर सकते हैं| इस से ऋण के प्रक्रिया में पारदर्शिता भी आएगी | जिन एमएसएमई के पास पंजीकृत जीएसटी है, सरकार उन्हे 2% ब्याज सब्वेन्शन देगी | “क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट योजना” के तहत 10 लाख तक की व्यापार ऋण कॉलेटरल-मुक्त रहेगी | “पीएम स्वनिधि योजना” के तहत असंगठित क्षेत्र को 10 हजार तक का ऋण बिना किसी कॉलेटरल के दिया जाएगा |

 

·         अपर्याप्त विपणन मंच: एमएसएमई को बड़ी एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से मुकाबला करना पड़ रहा है | विपणन कौशल, सुविधा एवं बजट के अभाव में उत्पादों को बड़े स्तर पे बेच पाना मुश्किल हो रहा है |

पहल - सरकार के आदेशानुसार सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को एमएसएमई से अनिवार्यत: 25% खरीदारी करनी है | गवर्नमेंट ई - मार्केटप्लेस (GeM) सरकार द्वारा संचालित ई-कॉमर्स पोर्टल है जिस से विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारी आवश्यक सामान्य उपयोग के सामानों और सेवाओं की ऑनलाइन खरीददारी कर सकते हैं| यह “आत्मनिर्भर भारत” कार्यक्रम को बल देगा | लगभग 150 उत्पाद श्रेणियों में 7400 से अधिक उत्पाद और परिवहन सेवाएँ, किराए पर पोर्टल पर उपलब्ध है और 140 करोड़ रुपये से अधिक की लेनदेन अभी तक जीईएम के माध्यम से हो चुकी है| 

 

·         नई तकनीक का अभाव: विगत कुछ वर्षों में मोबाईल और इंटरनेट के बढ़ते दायरे के कारण शहरी क्षेत्रों में तो नई तकनीकों का ज्ञान बढ़ा है पर ग्रामीण तथा असंगठित क्षेत्र अभी भी तकनीकी पंगु हैं| नई तकनीकों तथा कुशल कारीगरों के अभाव में उत्पादन की मात्रा भी कम होती है |

पहल - एमएसएमई मंत्रालय ने 6000 करोड़ रुपए की निधि आवंटित की है जिस से प्रोद्योगिकी उन्नयन के लिए टूल रूम के रूप में 20 हब और 100 स्पॉक स्थापित किये जायेंगे जो कि कारीगरों को नवीनतम टेक्नोलॉजी में प्रशिक्षित करेगी तथा उद्यमों को तकनीकी सहायता प्रदान करेगी | सरकार ने ‘क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी फॉर टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन” योजन के तहत नई तकनीक अपनाने के लिए 1 करोड़ तक की खरीद पर 15% सब्सिडी देगी |

 

·         गुणवत्ता और निर्यात की चुनौतियाँ: सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों में परंपरागत मशीनों के इस्तेमाल से उत्पादों की गुणवत्ता कमतर होती हैं और उत्पादन की मात्रा भी कम होती है जो कि निर्यात के लिए विदेशी उत्पादों के सामने टिक नहीं पाते |

पहल - एमएसएमई मंत्रालय ने “जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट” प्रमाणन योजना शुरू की है जिसमें उद्योगों को आर्थिक सहायता एवं प्रमाण पत्र दिये जायेंगे जिससे वो उच्च कोटि के उत्पाद बना सके जो वैश्विक स्तर का हो और वातावरण को भी कम दुष्प्रभावित करे | वर्ष 2019-20 में सरकार ने 116.94 करोड़ का बजट इसके लिए आवंटित किया था | भारत सरकार ने नए एवं क्षमतावान निर्यातकों की मदद के लिए “निर्यात बंधु योजना” शुरू की है | इसमें निर्यातकों को विभिन्न कार्यक्रमों एवं परामर्श सत्रों द्वारा विदेशी व्यापार के पहलू समझाये जायेंगे तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने में मदद की जाएगी |

 

·         व्यापार सुगमता सूचकांक : विश्व बैंक के डूइंग बिजनेस 2020 रिपोर्ट के हिसाब से व्यापार सुगमता सूचकांक में भारत को 190 देशों में 63 वाँ स्थान प्राप्त हुआ है | यह सूचकांक दर्शाता है की किस देश में नया कारोबार सबसे जल्दी और सुगमता से चालू किया जा सकता है |

पहल - भारत सरकार निरंतर यह प्रयास कर रही है कि कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने की प्रक्रिया में कोई अवरोध ना आये | इसी को मद्देनजर रखते हुए जीएसटी कर व्यवस्था का क्रियान्वयन किया गया जिसके माध्यम से कर भुगतान को सरल और डिजिटलीकृत तरीके से किया जा रहा है |

सरकार ने लघु और मध्यम उधयोगों तथा कृषि क्षेत्र में ऋण की उपलब्धता बढ़ाने के लिए MCLR प्रणाली के स्थान पर इक्स्टर्नल बेंचमार्क रेट की प्रणाली लागू की है |

भविष्य की ओर

कोविड-19 होने बाद सारी स्थितियाँ बदल गई हैं| आंकड़ों के अनुसार 30-35 फीसदी उद्यम या तो बंद हो गए हैं या बंदी के कगार पे है | इनको पुनर्जीवित करने के लिए सरकार ने जो राहत पैकेज दिए हैं उस से धीरे धीरे एमएसएमई की गाड़ी पटरी पर आने की उम्मीद है | शहरी क्षेत्रों से लॉकडाउन के समय मजदूरों को जो पलायन हुआ उसकी वजह से शारीरिक श्रमिकों की कमी हो गई है जिस से काम चालू होने के बावजूद उत्पादन पर असर पड़ रहा है|

लॉकडाउन के समय डिजिटल व्यापार में वृद्धि हुई है तथा सरकार को ई-कॉमर्स से राजस्व में 50% का इजाफा हुआ है | यह डिजिटल इंडिया के सकल प्रसार और बड़े पैमाने कार्यान्वित करने का सही समय है क्यूँकि सारे उद्यमों को अभी इसकी जरूरत है | सिस्को इंडिया एसएमबी डिजिटल मैच्चयूरिटी स्टडी 2020 के हिसाब से एमएसएमई के डिजिटलीकरण से भारत के जीडीपी में $158-216 बिलियन का इजाफा वर्ष 2024 तक हो सकता है |


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